केदार गौरी व्रत कथा, महत्त्व और विधि (हिंदी में) - Kedar Gauri Vrat Katha, Mahattva aur Vidhi (Hindi me)
केदार गौरी व्रत करने से मनुष्य की सभी इच्छाएं और मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। केदार गौरी व्रत भारत के दक्षिणी राज्यों में विशेष रूप से तमिलनाडु के महत्वपूर्ण हिस्सों में सबसे अधिक मान्यता प्राप्त धार्मिक पर्व है।
केदार गौरी व्रत कथा
केदार गौरी व्रत का महत्व
हिंदी पुराणों में केदार गौरी व्रत को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। केदार गौरी व्रत करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। देवताओं ने भी अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए केदारगौरी व्रत किया था।
केदार गौरी पूजन विधि
इस दिन भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप की पूजा की जाती है। केदार गौरी व्रत को हमेशा पवित्र मन से किया जाना चाहिए। जो भी मनुष्य इस व्रत को करता है उसे एक भ्राह्मण को बुलाकर भोजन कराना चाहिए।
इस व्रत की पूजा लगातार २१ दिनों तक चलती है। सभी श्रद्धालु पवित्र स्थान पर कलश स्थापित करके नियमित रूप से उसकी पूजा करते हैं। कलश को एक लाल कपड़े से ढककर उसके ऊपर चावल का एक ढेर रखा जाता है। पुरे कलश को २१ धागे बांधे जाते हैं और २१ भ्राह्मणो को बुलाया जाता है। इस पूजा में स्थापित कलश को भगवान केदारेश्वर का स्वरुप माना जाता है।
कुमकुम, अक्षत आदि विविध सामग्रियों को अर्पित करके कलश की पूजा की जाती है। इसके बाद भगवान शिव के मंत्रों का जाप किया जाता है। साथ ही साथ भगवान् शिव को २१ प्रकार के भोजन का विशेष भोग चढ़ाया जाता है।
केदार गौरी व्रत कथा
पुराणों के अनुसार यह व्रत देवी पार्वती ने किया था। एक बार माता पार्वती के एक भक्त ने उनकी भक्ति छोड़कर भगवान शिव की पूजा करना आरंभ कर दिया। जिससे माता पार्वती क्रोधित हो गए। माता पार्वती ने शिव के शरीर का हिस्सा बनने के लिए ऋषि गौतम की तपस्या की। तब ऋषि गौतम ने माता पार्वती को पूरी श्रद्धा के साथ लगातार २१ दिनों तक केदार गौरी व्रत का पालन करने के लिए कहा।
माता पार्वती ने गौतम ऋषि की बात मानकर पूरे नियमानुसार २१ दिनों तक केदारगौरी व्रत का पालन किया। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अपने शरीर का बायां हिस्सा माता पार्वती को दे दिया. तभी से उनके इस रूप को अर्धनारीश्वर के नाम से जाना जाता है। तब से इस दिन केदारगौरी व्रत मनाया जाता है। माता पार्वती ने भी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्वयं ही यह उपवास रखा था।