गर्भ गीता – Garbh Geeta In Pregnancy (Hindi) - श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद

श्री कृष्ण भगवान्‌ जी कहते है कि जो प्राणी इ्स गर्भ गीता का सद्भावना से विचार मनन करता है वह पुरुष फिर गर्भवास में नहीं आता है। श्री कृष्ण भगवान और अर्जुन का यह संवाद, जीवन-मरण के सारे सवालों के जवाब प्रदान करता हैं।

अथ गर्भ गीता 

श्री कृष्ण भगवान्‌ जी कहते है कि जो प्राणी इ्स गर्भ गीता का सद्भावना से विचार मनन करता है वह पुरुष फिर गर्भवास में नहीं आता है। श्री कृष्ण भगवान और अर्जुन का यह संवाद, जीवन-मरण के सारे सवालों के जवाब प्रदान करता हैं। अथः श्री गर्भ गीता प्रारम्भ।। अर्जुन कहते है.. 

।।अर्जुनोवाच:।।

हे कृष्ण भगवान्‌! यह प्राणी जो गर्भ-वास में आता है । वह किस दोष के कारण आता है? हे प्रभु जी! जब यह जन्मता है, तब इसको जरा आदि रोग लगते हैं। फिर मृत्यु होती है । हे स्वामी! वह कौन-सा कर्म है जिसके करने से प्राणी जन्म मरण से रहित हो जाता है?

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! यह मनुष्य जो है सो अन्धा व मूर्ख है जो संसार के साथ प्रीति करता है । यह पदार्थ मैंने पाया है और वह मैं पाऊँगा, ऐसी चिन्ता इस प्राणी के मन से उतरती नहीं। आठ पहर माया को ही मांगता है। इन बातों को करके बार-बार जन्मता और मरता है। वह गर्भ विषे दुःख पाता रहता है। 

।।अर्जुनोवाच:।।

हे श्री कृष्ण भगवान्‌! यह मन मदमस्त हाथी की भाँति है, तृष्णा इसकी शक्ति है। यह मन तो पाँच इन्द्रियों के वश में है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार इन पाँचों में अहंकार बहुत बली है । सो कौन यत्न है जिससे मन वश में हो जाए?

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! यह मन निश्चय ही हाथी की भाँति है। तृष्णा इसकी शक्ति है। मन पाँच इन्द्रियों के वश में है । अहंकार इनमें श्रेष्ठ है। हे अर्जुन! जैसे हाथी अंकुश (कुण्डा) के वश में होता है। वैसे ही मनरूपी हाथी को वशमें करने के लिए ज्ञान रूपी अंकुश  है । अहंकार करने से यह जीव नरक में पड़ता है। 

।।अर्जुनोवाच:।।

हे भगवान्‌! जो एक तुम्हारे नाम के लिये वन खंडों में फिरते हैं, एक बैरागी हुए हैं, एक धर्म करते हैं, इनको कैसे जानें! जो वैष्णव हैं, वे कौन हैं ? 

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! एक वे हैं जो मेरे ही नाम के लिए वनों में फिरते हैं। वे संन्यासी कहलाते हैं। एक वे हैं जो सिर पर जटा बाँधते हैं और अंग पर भस्म लगाते हैं। उनमें मैं नहीं हूँ क्योंकि इनमें अहंकार है, इनको मेरा दर्शन दुर्लभ है। 

।।अर्जुनोवाच:।।

हे भगवान्‌! वह कौनसा पाप है जिससे स्त्री की मृत्यु हो जाती है ? वह कौन सा पाप है कि जिससे पुत्र मर जाता है ? और नपुंसक कौनसे पाप से होता है ?

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! जो किसी से कर्ज लेता है और देता नहीं, इस पाप से उसकी औरत मरती है और जो किसी की अमानत रखी हुई वस्तु पचा लेता है उसके पुत्र मर जाते हैं। जो किसी का कार्य किसी के गोचर आये पड़े और वह जबानी कहे कि मैं तेरा कार्य सबसे ही पहले कर दूँगा पर समय आने पर उसका कार्य न करे, इस पाप से नपुंसक होता है। ये बड़े पाप हैं । 

अर्जुनोबवाच:

हे भगबान्‌! किस पाप से मनुष्य सदैव रोगी रहता है? किस पाप से गधे का जन्म पाता है ? स्त्री का जन्म तथा टट्टू का जन्म क्यों पाता है और बिल्ली का जन्म किस पाप से होता है ?

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! जो भी मनुष्य कन्यादान करते हैं, और इस दान में मूल्य लेते हैं, वे दोषी हैं, वे मनुष्य सदा रोगी रहते हैं। जो विषय विकार के वास्ते मदिरा पान करते हैं वे टट्टू का जन्म पाते हैं। और जो झूठी गवाही भरते हैं वे औरत का जन्म पाते हैं।जो औरतें रसोई बना के पहले आप भोजन कर लेती हैं और पीछे परमेश्वर को अर्ध्यदान करती हैं तो वे बिल्ली का जन्म पाती हैं और जो मनुष्य अपनी झूठी वस्तु दान करते हैं वे औरत का जन्म पाते हैं । वह गुलाम औरतें होती हैं।

।।अर्जुनोवाच:।।

हे भगवान्‌! कई मनुष्यों को आपने सुवर्ण दिया है, सो उन्होंने कौनसा पुण्य किया है और कई मनुष्यों को आपने हाथी, घोड़ा, रथ दिये हैं, उन्होंने कौनसा पुण्य किया है? | 

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! जिन्होंने स्वर्ण दान किया है उनको घोड़े वाहन मिलते हैं। जो परमेश्वर के निमित्त कन्यादान करते हैं सो पुरुष का जन्म पाते हैं। 

।।अर्जुनोवाच:।।

हे भगवान्‌! जिन पुरुषों के अन्दर विचित्र देह है उन्होंने कौनसा पुण्य कार्य किया है ? किसी-किसी के घर सम्पत्ति है, कोई विद्यावान है, उन्होंने कौनसा पुण्य कार्य किया है?

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! जिन्होंने अन्नदान किया है, उनका सुन्दर स्वरूप है। जिन्होंने विद्या दान किया है, वे विद्यावान होते हैं । जिन्होंने संतों की सेवा की है वे पुत्रवान होते हैं।

।।अर्जुनोवाच:।।

हे भगवान्‌! किसी को धन से प्रीति है, कोई स्त्रियों से प्रीति करते हैं, इसका क्या कारण है समझाकर कहिये।

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! धन और स्त्री सब नाश रूप हैं। मेरी भक्ति का नाश नहीं है।

।।अर्जुनोवाच:।।

हे भगवान्‌! यह राजपाट किस धर्म के करने से मिलता है ? विद्या कौनसा धर्म करने से मिलती है ?

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! जो प्राणी काशी में निष्काम भक्ति से तप करते हुए देह त्यागते हैं, वे राजा होते हैं और जो गुरु की सेवा करते हैं, वे विद्यावान होते हैं।

।।अर्जुनोवाच:।।

हे भगवान किसी को धन अचानक बिना किसी परिश्रम से मिलता है सो उन्होंने कौनसा पुण्य कार्य किया है ?

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! जिन्होंने गुप्तदान किया है, उनको धन अचानक मिलता है। जिसने परमेश्वर का कार्य और पराया कार्य संवारा है वे मनुष्य रोग से रहित होते हैं।

।।अर्जुनोवाच:।।

हे भगवान्‌! कौन पाप से अमली होते हैं और कौन पाप से गूँगे होते हैं और कौन पाप से कुष्ठी होते हैं ?

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! जो आदमी नीच कुल की स्त्री से गमन करते हैं वो अमली होते हैं। जो गुरु से विद्या पढ़कर मुकर जाते हैं सो गूँगे होते हैं । जिन्होंने गौ घात किया है वे कुष्ठी होते हैं।

।।अर्जुनोवाच:।।

हे भगवान्‌! जिस किसी पुरुष की देह में रक़्त का विकार होता है वह किस पाप से होता है और कौन दरिद्र होते हैं? किसी को खण्ड वायु होती है, और कोई अंधे होते हैं तो कोई अपंग होते हैं, और कई स्त्रियाँ बाल विधवा होती हैं, तो यह सब किन पापों से होता हैं ।

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! जो सदा क्रोधवान रहते हैं, उन्हें रक्त विकार होता है । जो मलीन रहते हैं, वे सदा दरिद्री होते हैं । जो कुकर्मी ब्राह्मण को दान देते हैं, उनको खण्ड वायु होती है। जो पराई स्त्री को नग्न देखते हैं, गुरु की पत्नी को कुद्दष्टि से देखते हैं, सो अन्धे होते हैं । जिसने गुरु और ब्राह्मण को लात मारी है, वो लंगड़ा व अपंग होता है। जो औरत अपने पति को छोड़कर पराये पुरुषों से संग करती है, सो वह बाल विधवा होती है।

।।अर्जुनोवाच:।।

हे भगवन्‌! तुम परब्रह्म हो, तुमको नमस्कार है। पहले मैं आपको सम्बन्धी जानता था परन्तु अब में ईश्वर रूप जानता हूँ। हे परब्रह्म! गुरुदीक्षा कैसी होती है, सो कृपा कर मुझको कहो। 

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! तुम धन्य हो, तुम्हारे माता-पिता भी धन्य हैं। जिनके तुम जैसा पुत्र है। हे अर्जुन! सारे संसार के गुरु जगन्नाथ है, विद्या का गुरु काशी, चारों वर्णों का गुरु सन्यासी है । सन्यासी उसको कहते हैं, जिसने सबका त्याग करके मेरे विषय में मन लगाया है, सो ब्राह्मण जगत्‌ गुरु है। हे अर्जुन! यह बात ध्यान देकर सुनने की है। गुरु कैसा करें, जिसने सब इंद्रियाँ जीती हों, जिसको सब संसार ईश्वरमय नजर आता हों और सब जगत से उदास हो । ऐसा गुरू करे जो परमेश्वर को जानने वाला हो और उस गुरु की पूजा सब तरह से करे। हे अर्जुन! जो गुरु का भक्त होता है और जो प्राणी गुरु के सम्मुख होकर भजन करते हैं, उनका भजन करना सफल है। जो गुरु से विमुख हैं उनको सप्त ग्रास मारे का पाप है। गुरु से विमुख प्राणी दर्शन करने योग्य नहीं होते । जो गृहस्थी संसार में गुरु के बिना है वो चांडाल के समान है, जिस तरह मदिरा के भंडार में जो गंगाजल है वह अपवित्र है। इसी तरह गुरु से विमुख व्यक्ति का भजन सदा अपवित्र होता है। उसके हाथ का भोजन देवता भी नहीं लेते । उसके सब कर्म निष्फल हैं। कूकर, सूकर, गदर्भ, काक ये राबकी सब योनियाँ बड़ी खोटी योनियाँ हैं। इन सबसे वह मनुष्य खोटा है, जो गुरु नहीं करता । गुरु बिना गति नहीं होती। वह अवश्य नरक को जायेगा। गुरु दीक्षा बिना प्राणी के सब कर्म निष्फल होते हैं। हे अर्जुन! जैसे चारों वर्णों को मेरी भक्ति करना योग्य है, वैसे गुरु धार के गुरु की भक्ति करना योग्य है। जैसे गंगा नदियों में उत्तम है, सब व्रतों में एकादशी का व्रत  श्रेष्ठ है। वैसे ही हे अर्जुन! शुभ कर्मों में गुरु सेवा उत्तम है, गुरुदीक्षा बिना प्राणी पशु योनि पाता है। जो धर्म भी करता है सो पशु योनि में फल भोगता है। वह चौरासी योनियों में भ्रमण करता रहता है।

।।अर्जुनोवाच:।।

हे श्रीकृष्ण भगवान्‌! गुरुदीक्षा क्या होती है ? 

।।श्री भगवानोवाच:।।

हे अर्जुन! धन्य जन्म है उसका जिसने यह प्रश्न किया है। तू धन्य है । गुरुदीक्षा के दो अक्षर हैं! हरि ओम । इन अक्षरों को गुरु कहता है। यह चारों वर्णों को अपनाना श्रेष्ठ है। हे अर्जुन! जो गुरु की सेवा करता है, उस पर मेरी प्रसन्‍नता है। वह चौरासी योनियों से छूट जायेगा। जन्म-मरण से रहित हो नरक नहीं भोगता। जो प्राणी गुरु की सेवा नहीं करता वह साढ़े तीन करोड़ वर्ष तक नरक भोगता है। जो गुरु की सेवा करता है, उसको कई अश्वमेघ यज्ञ के पुण्य का फल मिलता है। गुरु की सेवा मेरी सेवा है। हे अर्जुन! हमारे तुम्हारे संवाद को जो प्राणी पढ़ेंगे और सुनेंगे वो गर्भ के दुःख से बचेंगे उनकी चौरासी योनियाँ कट जायेगी।

श्रीकृष्ण भगवान्‌ के इस ज्ञानरूपी संवाद के कारण इस पाठ का नाम गर्भ गीता है। और भगवान्‌ के मुख से अर्जुन ने इसे श्रवण किया है। गुरुदीक्षा लेना उत्तम कर्म है। उसका फल यह है कि नरक की चौरासी योनियों से जीव बचा रहता है, भगवान्‌ बहुत प्रसन्न होते हैं। 

इस कथा में अंत तक बने रहने के लिए धन्यवाद। ऐसी और भक्ति और ज्ञानवर्धक रचनाओं को सुनने के लिए “भक्तिगाथा” सब्सक्राइब कीजिये।