अहोई अष्टमी व्रत कथा (आरती के साथ - हिंदी में) - Ahoi Ashtami Vrat Katha (Aarti ke saath - Hindi me)

अहोई माता का व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और उज्जवल भविष्य के लिए व्रत रखती है। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है। बोलो श्री अहोई माता की जय।

अहोई अष्टमी व्रत कथा (आरती के साथ - हिंदी में) - Ahoi Ashtami Vrat Katha (Aarti ke saath - Hindi me)

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(संगीत रूप में)

अहोई अष्टमी व्रत कथा

एक समय एक साहूकार के सात बेटे और सात बहुएं थीं इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं और बेटी मिट्टी लाने जंगल गईं। बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी.

 

मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। स्याहु इस पर क्रोधित होकर बोली कि तुमने मेरे बच्चे को मारा है, अब मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी। स्याहू की बात से डरकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से बचाने की गुहार लगाने लगी और भाभियों से विनती करने लगी कि वे उसकी जगह पर अपनी कोख बंधवा लें। सातों भाभियों में से सबसे छोटी भाभी को अपनी ननद पर तरस आ गया और वो उसने स्याहु से कहा कि आप मेरी कोख बांधकर अपने क्रोध को समाप्त कर सकती हैं.

 

स्याहु ने उसकी कोख बांध दी। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे हुए, वे जीवित नहीं बचे। सात दिन बाद उनकी मौत हो जाती थी। इसके बाद उसने पंडित को बुलवा कर इसका उपाय पूछा गया तो पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। सुरही सेवा से प्रसन्‍न होती है और छोटी बहू से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है। तब छोटी बहू कहती है कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं। आप मेरी कोख खुलवा दें तो आपकी बहुत मेहरबानी होगी.

 

सेवा से प्रसन्‍न सुरही छोटी बहु को स्याहु माता के पास ले जाती है। वहां जाते समय रास्ते में दोनों थक कर आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को इंसने जा रहा है। तभी छोटी बहू सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और अपने बच्चे को जीवित देखकर प्रसन्‍न होती है। इसके बाद वो छोटी बहू और सुरही को स्याहु माता के पास पहुंचा देती है। वहां जाकर छोटी बहू स्याहु माता की सेवा करती है। इससे प्रसन्‍न स्याहु माता, उसे सात पुत्र और सात बहुओं से समृद्ध होने का का  आशीर्वाद देती हैं और घर जाकर अहोई माता का व्रत रखने के लिए कहती हैं। इसके प्रभाव से छोटी बहू का परिवार पुत्र और बहुओं से भर जाता है।

अहोई माता की आरती

जय अहोई माता, जय अहोई माता ।

तुमको निसदिन ध्यावत, हर विष्णु विधाता ॥

॥ ॐ जय अहोई माता॥

 

ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला, तू ही है जगमाता ।

सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥

॥ ॐ जय अहोई माता॥

 

माता रूप निरंजन, सुख-सम्पत्ति दाता ।

जो कोई तुमको ध्यावत, नित मंगल पाता ॥

॥ ॐ जय अहोई माता॥

 

तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता ।

कर्म-प्रभाव प्रकाशक, जगनिधि से त्राता ॥

॥ ॐ जय अहोई माता॥

 

जिस घर थारो वासा, वाहि में गुण आता ।

कर न सके सोई कर ले, मन नहीं घबराता ॥

॥ ॐ जय अहोई माता॥

 

तुम बिन सुख न होवे, न कोई पुत्र पाता ।

खान-पान का वैभव, तुम बिन नहीं आता ॥

॥ ॐ जय अहोई माता॥

 

शुभ गुण सुंदर युक्ता, क्षीर निधि जाता ।

रतन चतुर्दश तोकू, कोई नहीं पाता ॥

॥ ॐ जय अहोई माता॥

 

श्री अहोई माँ की आरती, जो कोई गाता ।

उर उमंग अति उपजे, पाप उतर जाता ॥

 

ॐ जय अहोई माता, मैया जय अहोई माता ।